स्वछ भारत अभियान सीखा गया एक अंग्रेज 🫡🫡🫡🫡🫡🫡
ट्रैन की सफर की एक बात है... एक बार मे berahmpur ओड़िसा से Coimbatore सफर कर रहा था। बोगी मे यात्री खचा खच भरे हुवे थे.. मेरे पास स्लीपर का वेटिंग टिकट था पर वह वेटिंग मे था। मे किसी प्रकार से किसी एक भाई की सीट पे बैठ कर जा रहा था। मेरे सामने वाले एक सीट पे एक अंग्रेज पर्यटक बैठा था। मे उसको बहुत समय से वॉच कर रहा था। उसने सीट के एक कोने मे एक बड़े से काली प्लास्टिक की पन्नी रखी थी। और वह सफर के दौरान जो भी खाता था उसका वेस्टज उस काली पन्नी मे रखता था। पहले बार जब उसको देखा तो एकदम अजब सा लगा...... ऐसा लग रहा था की यह कही पागल तो नहीं है...... पुरे 23 घंटे के सफर मे उसने जितना भी खाया पिया उन सब का वेस्टगे सब उस पन्नी मे कट्ठा करता गया। और सामने बैठे हम भारतीय कुछ भी खाना और सीट के निचे नहीं तो खिड़की से बाहर कर रहे थे। जब ट्रैन चेन्नई मे जाके रुकी तब सभी यात्री उतरने लगे मे उस अंग्रेज को एक दम से देख रहा था की अब वह क्या करने वाला है। फिर मैंने उसे देखा...